।। श्रीहरिः ।।

                     





आजकी शुभ तिथि–
  भाद्रपद कृष्ण दशमी, वि.सं.-२०७८, बुधवार 
         भगवान्‌से सम्बन्ध


दुष्टोंका विनाश, भक्तोंका परित्राण (रक्षा) और धर्मकी अच्छी तरहसे स्थापना, इसके लिये भगवान् अवतार लेते हैं । दुष्टोंका विनाश करना, भक्तोंकी रक्षा करना । इसका अर्थ यह नहीं कि दुष्टोंको मार देना और भक्तोंको न मरने देना, पर भक्त भी तो मर जाते हैं । तो रक्षाका अर्थ उनके शरीरोंको ‘है ज्यों कायम रखना’‒यह नहीं है । इसका अर्थ है ‘उनके भावोंकी रक्षा ।’ भक्तकी दृष्टिमें शरीरका कोई मूल्य नहीं है । वहाँ मूल्य है ‘भगवद्‌भक्ति’ का । भगवान्‌की तरफ चलनेवाले मंसूर आदिने फाँसी स्वीकार कर ली हँसते-हँसते । शरीरकी वहाँ कोई इज्जत नहीं है । इसको तो ‘एकान्तविध्वंसिषु’ कहा है । यह नष्ट होनेवाला ही है, यह तो नष्ट होनेवाली चीज है‒‘पिण्डेषु नास्था भवन्ति तेषु ।’ भगवान् अवतार लेकर लीला करते हैं । उस लीलाको गा-गाकर भक्त मस्त होते रहते हैं । यह बिना अवतारके नहीं हो सकता । भगवान्‌की चर्चा चलती है, कथा चलती है, लीला चलती है । यह सब अवतार होनेसे ही हो सकता है । तो लोग गा-गाकर संसारसे तरते जाते हैं और तरते ही रहते हैं । भगवान् इस तत्त्वको जानते हैं । इस वास्ते अवतार लेकर लीला करते हैं और संत-महात्मा भी इस वास्ते भगवच्चर्चा करते हैं ।

तव कथामृतं तप्तजीवनं  कविभिरीडितं  कल्मषापहम् ।

श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥

जो आपकी कथामृतको कहते हैं, सुनते हैं, विचार करते हैं, वे ‘भूरिदाः’ बहुत देनेवाले हैं तो वे देनेवाले भी हैं और लेनेवाले भी हैं । मानो सुननेवालोंको देते हैं और सुनकर लेते हैं । सुननेवालोंको लाभ होता है तो कहनेवालोंको नहीं होता है क्या ? होता ही है । इस वास्ते भगवान् अवतार लेकर लीला करते हैं, तो भक्तोंकी रक्षा क्या है ?

भक्तोंका धन हैं भगवान् । उन भगवान्‌की लीला कहते, सुनते, विचार करते रहेंयही वास्तवमें भक्तोंकी रक्षा है और इस वास्ते ही हनुमान्‌जीको ‘प्रभु चरित्र सुनिबेको रसिया’ कहा है । भगवान्‌का चरित्र सुननेके लिये वे रसिया हैं, रसिया । वाल्मीकिरामायणमें आता है कि जब भगवान् दिव्य साकेतलोक जाने लगे तो हनुमान्‌जीने कहा मैं साथ नहीं चलूँगा । जबतक आपकी कथा भूमण्डलपर रहेगी, मैं भूमण्डलपर रहूँगा । जहाँ-जहाँ आपकी कथा होगी, वहाँ-वहाँ सुनूँगा । भगवान्‌को छोड़कर कथाका लोभ लगा उनको । भगवान्‌को देखनेसे गरुड़जीको मोह हो गया । भगवान्‌को देखनेसे काकभुशुण्डिजीको मोह हो गया, भगवान्‌को देखनेसे नारदजीको मोह हो गया । भगवान्‌को देखनेसे सतीको मोह हो गया और वह रामायण सुननेसे मिट गया । भगवान्‌को देखनेसे गरुड़जीको मोह हो गया और चरित्र सुननेसे मोह दूर हो गया । यह तो जानते ही हैं आप ! तो भगवान्‌से बढ़कर भगवान्‌के चरित्र हैं । यही भक्तोंकी रक्षा है कि इस चर्चाको करते रहें । अपने भाई लोग जो कि पारमार्थिक मार्गमें चलना चाहते हैं, उनका विचार रहता है कि अच्छे महात्माओंका संग करें । ऊँचे दर्जेके संत-पुरुष हों तो उनका हम संग करें । यह भाव रहता है और यह ठीक ही है उचित ही है ! परन्तु इसी अटकलको महात्मा पुरुष लगा लें अपने लिये तो वे अपनेसे ऊँचोंका संग करेंगे । वे उनसे ऊँचोंका, भगवान्‌का ही संग करेंगे । फिर हमारे साथ माथा-पच्ची कौन करेगा !