।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

गीतामें भगवन्नाम


प्रश्न‒जिसके पाप बहुत है, वह भगवान्‌का नाम नहीं ले सकता; अतः वह क्या करे ?

उत्तर‒बात सच्ची है । जिसके अधिक पाप होते हैं, वह भगवान्‌का नाम नहीं ले सकता ।

वैष्णवे भगवद्द्भक्तौ प्रसादे हरिनाम्नि च ।

अल्पपुण्यवतां  श्रद्धा  यथावन्नैव  जायते ॥

अर्थात् जिसका पुण्य थोड़ा होता है, उसकी भक्तोंमें, भक्तिमें, भगवत्प्रसादमें और भगवन्नाममें श्रद्धा नहीं होती ।

जैसे पित्तका जोर होनेपर रोगीको मिश्री भी कड़वी लगती है । परन्तु यदि वह मिश्रीका सेवन करता रहे तो पित्त शान्त हो जाता है और मिश्री मीठी लगने लग जाती है । ऐसे ही पाप अधिक होनेसे नाम अच्छा नहीं लगता; परन्तु नामजप करना शुरू कर दें तो पाप नष्ट हो जायँगे और नाम अच्छा, मीठा लगने लग जायगा तथा नामजपका प्रत्यक्ष लाभ भी दीखने लग जायगा ।

प्रश्न‒जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा है, वह तो नाम ले सकता है, उसके मुखसे नाम निकल सकता है; परन्तु जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा ही नहीं, वह कैसे नाम ले सकता है ?

उत्तर‒एक होना’ होता है और एक करना’ होता है । भाग्य अर्थात् पुराने कर्मोंका फल होता है और नये कर्म किये जाते हैं, होते नहीं । जैसे व्यापार करते हैं और नफा-नुकसान होता है; खेती करते हैं और लाभ-हानि होती है; मन्त्रका सकामभावसे जप (अनुष्ठान) करते हैं और उसका नीरोगता आदि फल होता है । बद्रीनारायण जाते हैं‒यह करनाहुआ और चलते-चलते बद्रीनारायण पहुँच जाते हैं‒यह ‘होनाहुआ । दवा लेते है‒यह करनाहुआ और शरीर स्वस्थ या अस्वस्थ होता है‒यह होनाहुआ । हानि-लाभ, जीना-मरना, यश-अपयश‒ये सब होनेवाले हैं; क्योंकि ये पूर्वजन्ममें किये हुए कर्मोंके फल है[*] । परन्तु नामजप करना नया काम है । यह करनेका है, होनेका नहीं । इसको करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । हाँ, इसमें इतनी बात होती है कि अगर किसीने पहले नामजप किया हुआ है तो नामजपकी महिमा सुनते ही उसकी नामजपमें रुचि हो जायगी और वह सुगमतासे होने लग जायगा । परन्तु पहले जिसका नामजप किया हुआ नहीं है, वह अगर नामकी महिमा सुने तो उसकी नामजपमें जल्दी रुचि नहीं होगी । अगर नामजपकी महिमा कहनेवाला अनुभवी हो तो सुननेवालेकी भी नाममें रुचि हो जायगी और उस अनुभवीके संगमें रहनेसे उसके लिये नामजप करना भी सुगम हो जायगा ।

जो भाग्यमें लिखा है, वह फल होता है, नया कर्म नहीं । नामजप करना शुरू कर दें तो वह होने लग जायगा; क्योंकि नामजप करना नया कर्म, नयी उपासना है । अतः हमारे भाग्यमें नामजप करना, सत्संग करना, शुभ-कर्म करना लिखा हुआ नहीं है’‒ऐसा कहना बिलकुल बहानेबाजी है । नामजप, सत्संग आदि हमारे भाग्यमें नहीं हैं’ऐसा भाव रखना कुसंग है, जो नामजप आदि करनेके भावका नाश करनेवाला है ।



[*] सुनहु भरत भावी प्रबल  बिलखि कहेउ मुनिनाथ ।

   हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ ॥

(मानस २ । १७१)